ASTROSAT – Hindi FAQ

ऐस्ट्रोसॅट सम्बंधित प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ):

Translation by Dr. Divya Oberoi
(उत्तर नीचे देखिये। अधिक जानकारी इस लिंक पर मिलेगी.)

 

अस्ट्रोसैट भारत की सर्वप्रथम बहु-तरंगीय अंतररक्ष वेधशाला है। २८ सितम्बर, २०१५ को इसे इसरो द्वारा अंतररक्ष में प्रक्षेसित सकया गया। इस अनूठी वेधशाला में िांच दूरबीनें हैं। इस सार्वजसनक र्ेधशाला का उद्देश्य हमारे ब्रह्माण्ड के बारे में कुछ मूल प्रशनों के उत्तर देना है उदाहरणतः – न्मूटरॉन तारे , ब्लैक होल, चरम घनत्व िर िदाथव, तारों का ज, यहााँ तक की प्राकृस त के मौसलक बल (शक्ति)। यहााँ हम कुछ ऐसे प्रशनों के उत्तर प्रस्तुत कर रहे हैं जो संभर्तः आिके मक्तस्तष्क में उठ रहे होंगे।

१. ASTROSAT एक बहु-तरंगीय वेधशाला क्यं है ?

कल्पना कीसजये सक हम मानर्ीय शरीर को समझने की कोसशश कर रहे हैं िरन्तु हम उसे छू नहीं सकते, मात्र उसमे से सनकलती हुई तरंगों का सनरीक्षण कर सकते हैं । दृश्य (सर्सिबल) प्रकाश हमें त्वचा, अधोरि (इंफ्रारेड) प्रकाश हमें शरीर के तािमान और रि र्ासहसनयों, िार-बैंगनी (अल्ट्रा-र्ायलेट) प्रकाश तंतुओं और एक्स-रे प्रकाश हमें शरीर के अंदर की हड्डीओं के बारे में जानकारी देती हैं । शरीर के बारे में संिूणव जानकारी प्राप्त करने के सलए इन सभी सभन्न सभन्न प्रकाश तरंगों के द्वारा जानकारी प्राप्त करना आर्श्यक है ।
ब्रम्ांड के बारे में जानकरी प्राप्त करने का एकमात्र तरीका है – ब्रम्ांड से आती हुई सभन्न सभन्न प्रकाश तरंगों का सनरीक्षण । अन्तररक्षीय सिंड (स्रोत) इन सभी प्रकाश तरंगों में प्रकासशत होते हैं – रेसडयो और माइक्रोर्ेर् से अधोरि और दृश्य प्रकाश, और िार बैंगनी से एक्स-रे और गामा प्रकाश। सभन्न सभन्न प्रकार की प्रकाश तरंगे, एक ही सिंड में सभन्न सभन्न प्रकार की भौसतक प्रसक्रयाओं से उत्पन्न होती हैं । सकसी भी सिंड को सम्प्पूणव रूि से समझने के सलए इन सभी तरंगों में उसका सनरीक्षण करना आर्श्यक है । इसके असतररि, उ ऊजाव तरंगों का उत्सजवन बहुत िररर्तवनशील होता है और सदैर् बदलता रहता है । इस कारण इन सभी तरंगों के प्रकाश को एक साथ देखना आर्श्यक है । अस्ट्रोसैट के बारे में एक अनूठी बात यह है की यह एक साथ ब्रह्माण्ड को सनकट और दूर िार-बैंगनी, और कम और असधक ऊजाव र्ाली एक्स-रे प्रकाश में देख सकता है !

२. अस्ट्रयसैट का अंतररक्ष में हयना आवश्यक क्यं है ?

िृथ्वी का र्ातार्रण हमें अंतररक्ष से आने र्ाले जीर्न के सलए हासनकारक सर्सकरण, जैसे िार-बैंगनी, एक्स-रे और गामा-रे (और कुछ हद तक अधोरि और माइक्रोर्ेर् प्रकाश) से सुरसक्षत रखता है। ये सर्सकरण िृथ्वी की सतह तक नहीं िहुाँच िाती हैं और इसी कारण िृथर्ी िर जीर्न संभर् है। हमारे र्ातार्रण से मात्र दृश्य और रेसडयो प्रकाश ही गुजर सकते हैं ।
यसद हमें अन्तररक्षीय स्रोतों के िार-बैंगनी और एक्स-रे प्रकाश का अध्ययन करना है तो अस्ट्रोसैट का हमारे र्ातार्रण के बाहर (ऊिर) होना आर्श्यक है । इसी कारण से ISRO ने अिने PSLV राकेट द्वारा इसे अंतररक्ष में प्रक्षेसित सकया है।

३. यह अभियान भकतने समय तक चलेगा ?

अस्ट्रोसैट का कायवकाल कम से कम ५ साल आंका गया है । यह अर्सध इस से असधक भी हो सकती है। यह बहुत सी बातों िर सनभवर करेगा , जैसे इसके उिकरणों में से गैस के ररसार् का दर, उिकरणों में अशुक्तियों का जमा होना, इत्यासद ।

४. अस्ट्रयसैट आकार में भकतना बड़ा है और इसका वज़न भकतना है?

अस्ट्रोसैट का र्िन १५१५ सकलो ग्राम है, जो की लगभग एक सामान्म कार के र्िन के बराबर है। इसकी ऊंचाई ६ मीटर है, लगभग एक २ मंसजली ईमारत के बराबर, और इस िर लगी सौयव िसियां ७ मीटर लम्बी हैं ।

५. अस्ट्रयसैट का ऊर्ाा स्रयत क्ा है?

अस्ट्रोसैट की ऊजाव का स्रोत सौयव ऊजाव है। इसके दोनो ओर दो सौयव िसियााँ हैं जो फोटो-इलेक्तररक प्रभार् द्वारा सूयव के प्रकाश को सबजली में िररर्सतवत करती हैं । ये सौयव िसियााँ १.६ सकलो र्ाट ऊजाव का उत्पादन करती हैं । इस ऊजाव से अस्ट्रोसैट की सलसथयम-आयन बैटरीयां चाजव होती हैं और र्े अस्ट्रोसैट के उिकरणों को ऊजावर्ान करती हैं |

६. अस्ट्रयसैट कय अंतररक्ष में पहुुँचाने के भलए (प्रक्षेपण) भकस प्रकार के यान (राकेट) का उपययग भकया गया है ?

अस्ट्रोसैट को अंतररक्ष में इसकी कक्षा तक िहुाँचाने के सलए PSLV के XL प्रकार के यान का प्रयोग सकया गया है। ख़ास नक्षत्र सर्ज्ञान के सलए ISRO का यह िहला प्रक्षेिण है । इस यान के ४ चरण हैं और इसमें ६ स्ट्राि-ओन मोटरें लगी हैं । PSLV-C30 का र्िन ३२० टन तथा ऊंचाई १५ मंसजले भर्न के बराबर है ।
PSLV यान का यह ३१र्ां प्रक्षेिण था, जो २८ ससंतम्बर २०१५ को भारतीय समय के अनुसार प्रातः १०:०० बजे सकया गया था। इस यान को अस्ट्रोसैट को अिनी कक्षा तक िहुाँचाने में मात्र २३ समनट लगे।

७. अस्ट्रयसैट भकस प्रकार की कक्षा में है?

अस्ट्रोसैट भूमध्य रेखा के ६५० सक. मी. ऊिर लगभग इसके समानांतर िररक्रमा करता रहेगा । भूमध्य रेखा के प्रसत अस्ट्रोसैट की कक्षा का झुकार् ६ अंश है। यह िृथ्वी की एक िररक्रमा ९७ समनट में िूरी करेगा, और इस प्रकार एक सदन में १५ बार िररक्रमा करेगा ।

८. अस्ट्रयसैट अपने लक्ष्य कय कैसे भनधााररत करेगा ?

अस्ट्रोसैट अंतररक्ष में काम करने र्ाली एक असत मूल्यर्ान र्ेधशाला है । अतः ऐसी व्यर्स्था की गयी है सक इसके कायवकाल का एक क्षण भी व्यथव न हो । खगोल शाक्तियों द्वारा प्रस्तासर्त और तत्पयवन्त स्वीकृत प्रस्तार्ों के अनुसार समय से िहले ही समय साररणी बना ली जाएगी । इस उिग्रह द्वारा िृथ्वी की िररक्रमा करते समय सूयव और िृथर्ी की क्तस्थसतयों से उत्पन्न होने र्ाली बाधाओं को भी समय साररणी बनाते समय ध्यान में रखा जायेगा । इस समय साररणी के अनुसार अस्ट्रोसैट िर र्े आदेश अिलोड कर सदए जायेंगे जो उसे बताते रहेंगे सक सनयत समय अनुसार सकस लक्ष्य का सकस प्रकार का सनरीक्षण करना है ।

९. अस्ट्रयसैट अंतररक्ष में अपने लक्ष्य पर अपनी दूरबीनयं कय कैसे केंभित करेगा ?

अन्म उिग्रहों की तरह अस्ट्रोसैट िर भी गयरोस्कोि लगे हैं। ये गयरोस्कोि अस्ट्रोसैट को अिने लक्ष्य की सदशा की ओर केंसित करने में सहायता करते हैं । अस्ट्रोसैट िर एक फ्लाई व्हील भी लगा है जो (rotational) गसतज ऊजाव का भंडारण करता है । इसे मोटरों द्वारा तीव्र गसत से घुमाया जाता है और जब अस्ट्रोसैट को अिनी दूरबीनों की सदशा बदलनी होती है, इस फ्लाई व्हील में जमा हुई ऊजाव का आर्श्यिा अनुसार प्रयोग सकया जाता है ।

१०. हमें अस्ट्रयसैट से डेटा कैसे प्राप्त हयगा ?

अस्ट्रोसैट िर एक ऐन्टेना लगाया गया है जो िृथ्वी की ओर डेटा प्रसाररत करेगा । यह ऐन्टेना X-बैंड (लगभग ८ GHz) िर काम करते हुए १०५ Mbit प्रसत सेकंड तक डेटा प्रसाररत कर सकता है। इस डेटा को प्राप्त करने के सलए बंगलुरु के िास र्ायलालू में एक ऐन्टेना का प्रयोग होगा । यह ऐन्टेना मात्र इस कायव के सलए समसिवत है। िररक्रमा के दौरान जब जब भी अस्ट्रोसैट र्ायलालू के ऊिर से गुजरेगा तो उसके द्वारा प्रसाररत डेटा को यह ऐन्टेना प्राप्त करेगा । सफर इस डेटा को इंसडयन स्पेस साइंस डेटा सेंटर में संग्रसहत सकया जायेगा। प्रत्येक िररक्रमा के दौरान र्ायलालू से अस्ट्रोसैट को थोड़े से समनटों के सलए ही देखा जा सकेगा । इसी अर्सध में डेटा को डाउनलोड सकया जायेगा और नये आदेशों को अिलोड सकया जायेगा। र्ायलालू ग्रहों से सम्बंसधत असभयानों में प्रयोग होने र्ाले इंसडयन डीि स्पेस नेटर्कव का केंि है।

११. क्ा अस्ट्रयसैट िारत की अंतररक्ष में प्रक्षेभपत पहली दूरबीन है?

जी नहीं । उ ऊजाव नक्षत्र शाि की शुरुआत भारत में सॉउक्तडंग रॉकेटों और ऊंचाई तक जाने र्ाले गुब्बारों से बहुत समय िहले से हो चूकी है। १९७५ में भारत के सबसे िहले उिग्रह, आयवभि, िर भी एक एक्स-रे उिकरण को प्रक्षेसित सकया गया था । इसके िशचात १९९४ में
SROSS-C2 में गामा-रे बस्ट्व सडटेरर (GRB) और १९९६ में IRS-P3 िर इंसडयन एक्स-रे एस्ट्रोनॉमी एक्सिेररमेंट (IXAE) को शासमल सकया गया था। इन िररयोजनाओं के अनुभर् ने भारतीय र्ैज्ञासनक समुदाय को नक्षत्र शाि को िूणवतः समसिवत िररयोजना के सलए प्रेररत सकया ।

१२. अस्ट्रयसैट पररययर्ना पर भकतना खचा हुआ?

इस अंतररक्ष यान और उसके उिकरणों के अनुसंधान, सर्कास और संरचना में लगभग १७८ करोड़ का खचव हुआ। प्रक्षेिण का खचव इसमें सक्तिसलत नहीं है।

१३. इस प्रकार की अन्य अंतरााष्ट्रीय पररययर्नाओं के मुकाबले अस्ट्रयसैट की क्ा भवशेषतायें हैं?

अब तक की अन्म ऐसी िररयोजनाओं के मुकाबले, एस्ट्रोसैट के उिकरणों की कुछ सर्सषश्टताएाँ हैं । इसके एक उिकरण UVIT की क्षमता अिनी तरह के िूर्व उिकरण GALEX से कहीं अच्ची है । यह सर्ख्यात हबल स्पेस टेसलस्कोि िर इसकी तरह के उिकरण के मुकाबले, एक बार मेंअंतररक्ष का काफी बड़ा सहस्सा (०.५ अंश) देख सकता है । LAXPC अिनी तरह का अंतररक्ष में प्रक्षेसित सकया जाने र्ाला अब तक का सबसे बड़ा उिकरण है । इसका इफेक्तरर् एररया ८००० र्गव से. मी. है और ३ keV से असधक ऊजाव र्ाली एक्स-रे घटनाओं के सलए यह एक्स-रे फोटोनों के िहुंचने का समय १० माइक्रोसैकेण्ड की सटीकता से माि सकता है ।
अस्ट्रोसैट की एक महत्विूणव क्षमता यह है सक इसके उिकरण न केर्ल िार-बैंगनी से ले कर एक्स-रे सकरणों का िता लगा सकते हैं बक्ति उनकी ऊजाव और िहुंचने समय का भी बहुत सटीकता से माि सकते हैं !

१४. अस्ट्रयसैट भकस प्रकार के भपंडयं का अध्ययन करेगा?

अस्ट्रोसैट ऐसे सकसी भी स्रोत का अध्ययन कर सकता है जो िार-बैंगनी अथर्ा एक्स-रे सकरणों का सर्कीणव (रेडीयेट) करता है । क्ोंसक ये उ ऊजाव के प्रकाश हैं, इनको सर्सकररत करने र्ाली भौसतक प्रसतसक्रयाएं रेसडयो या दृश्य सकरणों को ज देने र्ाली प्रसक्रयाओं से बहुत अलग हैं । गमव तरुण तारे और सघन र्ाइट ड्र्ाफव िार-बैंगनी सकरणों में प्रकाशमान होते हैं । इन तारों की सकरणों से तप्त गैस, सजसका तािमान कई १००० केक्तिन तक िहुाँच सकता है, भी िार-बैंगनी सकरणों में होती है। दससयों लाख केक्तिन तक उष्म, गैलेक्सी समूहों के गरूत्वाकषवण में फंसी, गैस एक्स-रे प्रकाश में प्रकाशमान होती है । अस्ट्रोसैट की एक्स-रे दूरबीन असधकतर कुछ असामान्म सिंडों, जैसे न्मूटरॉन तारे और ब्लैक होल, के अध्ययन के सलए इस्तेमाल की जाएगी। अिनी शक्तिशाली गरूत्वाकषवण शक्ति के कारण ये सघन सिंड अिने निदीकी साथी सिंड या तारों के बीच की गैस को अिनी ओर खींच लेते हैं । इनके गोल गोल चक्कर काटती ये गैस धीरे-धीरे इन सिंडों की ओर सगरती है और गमव होती जाती है । यह गैस
इतनी गमव हो जाती है सक यह एक्स-रे सकरणों में प्रकाशमान होती है । इस गैस का प्रकाश बहुत ही िररर्तवनशील होता है, और अस्ट्रोसैट हमें इन असामान्म सिंडों को समझने में मदद करेगा ।

१५. इन भपंडयं के बारे में अस्ट्रयसैट हमें क्ा नयी र्ानकारी देगा ?

अस्ट्रोसैट से प्राप्त सकया गया डेटा हमें इन सिंडों के बारे में कई मूल प्रश्ों का उत्तर देने में मदद करेगा । िार-बैंगनी सकरणें हमें बतायेंगी सक दैत्याकार तारे कैसे बनते हैं और गैलेक्सी में उनका सर्कास कैसे होता है । इसके अलार्ा ये सकरणें हमें हमारी आकाशगंगा के तारों के बीच की धूल की प्रकृसत और सर्तरण का अध्ययन करने में मदद करेंगी । िररर्तवनशील सिंडों, अथावत ऐसे कुछ नये स्रोत जो अचानक ही उज्जर्ल हो जाते हैं और सफर धीरे धीरे धूसमल हो जाते हैं, की खोज और अध्ययन अस्ट्रोसैट का एक महत्तर्िूणव लक्ष्य है । इन में से कुछ स्रोत गामा-रे बस्ट्वस हैं, सजनका मूल अभी तक ज्ञात नहीं है ।
न्मूटरॉन तारों के बहु-तरंगीय अध्ययन से हम उनका िव्यमान (मास) और व्यास (डायमीटर) माि सकते हैं । ये माि इन असत घनत्व तारों सक गहराई में क्ा र्स्तुक्तस्थसत है, यह जानने के सलए आर्श्यक है और र्ैज्ञासनकों को अभी तक इसका ज्ञान नहीं है । तेजी से अिनी धुरी िर घूमने र्ाले इन न्मूटरॉन तारों से आती हुई कुछ ख़ास तरंगें हमें इन असामान्म सिंडों के चुंबकीय क्षेत्र के बारे में सुराग देती हैं । िूरे ब्रह्माण्ड में इन सिंडों का चुंबकीय क्षेत्र सबसे ज्यादा है ! अस्ट्रोसैट हमें जनरल ररलेसटसर्टी को एक कड़ी कसौटी िर कसने और ब्लैक होल के बहुत िास तक झांकने में मदद करेगा ।

१६. क्ा अस्ट्रयसैट ब्लैक हयल कय देख पायेगा?

र्ैसे तो, जैसा उसके नाम से ही सर्सदत है, ब्लैक होल को देख िाना असंभर् है । इसकी ग्रुत्वाकषवण शक्ति इतनी सशि होती की प्रकाश की सकरणें भी इसमें से नहीं सनकल सकती । तो हमें इनके बारे जानकारी कैसे समलती है? आस िास के र्ातार्रण िर इसके प्रभार् से हम इसका िता लगा िाते हैं। तो एक प्रकार से हम कह सकते हैं की अस्ट्रोसैट ब्लैक को होल देख िायेगा ।
ब्लैक होल के आसिास की गैस इसकी मिबूत ग्रुत्वाकषवण शक्ति से क्तखचे चली आती हैं । िरन्तु यह गैस सीधे ब्लैक होल िर नहीं सगर सकती , इसके बजाये ये एक घुमार्दार स्पाइरल नुमा रास्ता लेते हुए एक चिटी सी सडस्क का रूि ले लेती है । धीरे धीरे अिना एंगुलर मोमेंटम (कोणीय संर्ेग) खोते हुये इस गैस के कण एक दुसरे से टकराते टकराते बहुत ही गमव हो जाते हैं और बहुत सी तरंगों में प्रकाशमान होते हैं । इस प्रकाश को उस सिंड के केंि में ब्लैक होल के सर्द्यमान होने का सबूत माना जाता है ।

१७. अस्ट्रयसैट पर कौन-कौन से उपकरण हैं ?

अस्ट्रोसैट िर ५ उिकरण या दूरबीन हैं, यह हैं:
 UVIT – अल्ट्रा-र्ायलेट इमेसजंग टेसलस्कोि
 LAXPC – लाजव एररया एक्स-रे प्रोिोरशोनल काउंटर
 SXT – सॉफ्ट एक्स-रे टेसलस्कोि
 CZIT – कैडसमयम सजंक टेल्ल्युराइड इमजेर
 SSM – स्कैसनंग स्काई मॉसनटर
इनमें से UVIT, LAXPC, SXT और CZIT की बनार्ट ऐसी है सक र्े एक समय िर सदा आकाश के समान भाग को ही देखते हैं । UVIT सनकट िार-बैंगनी (२००-३०० nm), सुदूर िार-बैंगनी (१३०-१८० nm) और दृश्य तरंगों में एक साथ देख सकता है । SXT ०.३-८ keV, LAXPC ३-८० keV और CZTI १०-१०० keV क्षेत्र में काम करते हैं ।
SSM असल में ३ छोटे एक्स-रे सडटेररों का समूह है जो हमेशां िूरे आसमान िर अिनी निर रखता है । जैसे ही कोई स्रोत अचानक ही बहुत उज्ज्वल हो उठता है, SSM द्वारा प्राप्त जानकारी का प्रयोग कर के अस्ट्रोसैट की ४ बड़ी दूरबीनों को उस सदशा में केंसित सकया जा सकता है ।

१९. अस्ट्रयसैट का भनमााण भकसने भकया?

भारत के कई र्ैज्ञासनक शोध संस्थानों ने आिसी सहयोग से अस्ट्रोसैट का सनमावण सकया है। बंगलुरु के इसरो उिग्रह केंि, मुंबई के टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान, बंगलुरु के ही भारतीय खगोल भौसतकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics) एर्ं रामन अनुसंधान संस्थान, िुणे के आयुका एर्ं राष्ट्रीय रेसडयो खगोलभौसतकी केंि, एर्ं अहमदाबाद की भौसतक अनुसंधान प्रयोगशाला ने समल कर अस्ट्रोसैट के उिकरणों का सनमावण और र्ैज्ञासनक सर्श्लेषण तकनीकों का सर्कास सकया है। इसके असतररि, SXT का सनमावण इंग्लैंड के लेंचेस्ट्र सर्श्वसर्द्यालय, एर्ं UVIT का सनमावण कनाडा की राष्ट्रीय अंतररक्ष एजेंसी के सहयोग से हुआ है। अस्ट्रोसैट और उसके प्रक्षेिण के सलए प्रयोग सकये गए राकेट का सनमावण भारत में ही हुआ है।

१९. अस्ट्रयसैट के भडज़ाइन भकन भकन चुनौभतययं का सामना करना पड़ा?

अस्ट्रोसैट भारत की िहली बड़ी अंतररक्षीय र्ेधशाला है, इस कारण इसका सनमावण चुनौतीिूणव था। SXT भारत में बनने र्ाला अिनी तरह का िहला उिकरण था। LAXPC अिनी प्रकार के िूरे सर्श्व के सबसे बड़े और सर्लक्षण उिकरणों में से है। UVIT के सनमावण के सलए असर्श्वसनीय रूि से शुि और स्वच्च र्ातार्रण की आव्शयकता थी, तासक उसे हर प्रकार के संदूषण (contamination) से बचाया जा सके। इस प्रकार अस्ट्रोसैट के हर एक उिकरण के
सलए कोई न कोई चीि ऐसी थी जो भारतीय र्ैज्ञासनक िहली बार कर रहे थे। इसी कारण अस्ट्रोसैट भारत में खगोलशािीय अनुसंधान में एक उल्लेखनीय नर्ीन कदम है।

२०. अस्ट्रयसैट का प्रययग कौन करेगा?

अस्ट्रोसैट एक सार्वजसनक र्ेधशाला है, इससलए यह हर संभासर्त शोधकताव के सलए उिलब्ध है, चाहे र्े भारतीय हों या सर्देशी। अस्ट्रोसैट के प्रक्षेिण के बाद के िहले ६ महीने में इसके सब उिग्रह प्रणासलयों और उिकरणों का सर्स्तार से िरीक्षण सकया जायेगा। इसके अगले ६ महीने अस्ट्रोसैट का सनमावण करने र्ाली टीम के उियोग के सलए समसिवत हैं। तत्पश्चात अस्ट्रोसैट के समय का एक सनधावररत अंश सभी भारतीय र्ैज्ञासनकों के प्रयोग के सलए उिलब्ध रहेगा। इसका उियोग करने के सलए उन्हें अिने र्ैज्ञासनक उियोग का प्रस्तार् प्रस्तुत करना होगा, तत्पश्चात सभी प्रस्तार्ों की समीक्षा होगी, और सजन र्ैज्ञासनकों के प्रस्तार् समीक्षा में खरे उतरेंगे, उन र्ैज्ञासनकों को अस्ट्रोसैट का प्रयोग करने का अर्सर प्राप्त होगा। प्रक्षेिण के २ र्षव बाद अंतरावष्ट्रीय र्ैज्ञासनक भी अस्ट्रोसैट के प्रगोय के सलए अिने प्रस्तार् प्रस्तुत कर िाएंगे। इसके असतररि, एक सनसश्चत अर्सध के िश्चात,अस्ट्रोसैट द्वारा प्राप्त सकये गये सभी डेटा उन सभी शोधकतावओं के सलए उिलब्ध होगे जो उसका उियोग करने के इच्चुक हैं!

२१. क्ा मैं िी अस्ट्रयसैट क्ा प्रययग कर सकता/सकती हुँ?

अर्श्य, अस्ट्रोसैट के प्रक्षेिण के १ र्षव बाद, जब अस्ट्रोसैट के समय का एक सनधावररत अंश सभी भारतीयों के सलए उिलब्ध होगा, तब समय समय िर अस्ट्रोसैट का प्रयोग करने के सलए प्रस्तार् आमंसत्रत सकये जायेंगे। यसद आिके मक्तस्तष्क में भी अस्ट्रोसैट प्रयोग करने के सलए कोई सर्चार है, तो आि भी अिना प्रस्तार् प्रस्तुत कर सकते हैं। सभी प्रस्तार्ों की समीक्षा की जाएगी, और यसद आिका प्रस्तार् चुना गया तो आि को भी अस्ट्रोसैट का उियोग करने का मौका समल सकता है!
अस्ट्रोसैट का समय बहुत ही मूल्यर्ान है, इससलए मात्र र्ही र्ैज्ञासनक-प्रस्तार् जो अस्ट्रोसैट का कुशलता से उियोग करेंगे, स्वीकार सकये जायेंगे। अस्ट्रोसैट से सकये जाने र्ाले शोध एर्ं इसकी सर्शेषताओं से अर्गत कराने के सलए कॉलेज और सर्श्वसर्द्यालयों के सर्द्यसथवयों और अध्यािकों के सलए कई प्रसक्षक्षण कायवशालाओं का आयोजन सकया गया है, और भसर्ष्य में भी सकया जायेगा। ये सर्शेष कायवशालाएं अस्ट्रोसैट का उियोग सीखने के सलए उत्तम अर्सर हैं।

२२. अस्ट्रयसैट से भलए गए भचत्र और डेटा मैं कहाुँ देख सकता/सकती हुँ ?

अस्ट्रोसैट द्वारा सलया गये सभी डेटा का इसरो के इंसडयन स्पेस साइंस डेटा सेंटर (Indian Space Science Data Centre) में भंडारण सकया जायेगा। एक सनसश्चत अर्सध के बाद, अस्ट्रोसैट द्वारा सलया गये सभी डेटा को सार्वजसनक प्रयोग के सलए उिलब्ध कराया जायेगा। इसके साथ-साथ, अस्ट्रोसैट के उिकरणों द्वारा प्राप्त सकये डेटा से बने सचत्र,
सजनका हम सभी को उत्सुकता से इंतिार है, समय-समय िर इसरो की र्ेबसाइट िर प्रकासशत सकये जायेंगे।

२३. क्ा अस्ट्रयसैट और अन्य िारतीय वेधशालाओं में कुछ संबंध हैं?

अर्श्य, अस्ट्रोसैट द्वारा प्राप्त की गयी िार-बैंगनी एर्ं एक्स-रे सकरणें हमें आकाशीय सिंडों के रहस्य सुलझाने में मदद करेंगी। अन्म र्ेधशालाओं द्वारा रेसडयो, अधोरि (इंफ्रारेड) और सकरणों से प्राप्त हुई जानकरी, अस्ट्रोसैट द्वारा प्राप्त सकये डेटा को और भी उियोगी बनाएंगी और हमें इन रहस्यों की तह तक िहुंचने में बहुत मदद करेंगे। इसके असतररि, जब भी अस्ट्रोसैट सकसी िररर्तवनशील आकाशीय िुंज का िता लगायेगा, उस िुंज की प्रकृसत को बेहतर समझ िाने के सलए अन्म र्ेधशालाएं रेसडयो और दृश्य सकरणों में उस िुंज का सनरीक्षण करेंगी। इन सब कारणों से अस्ट्रोसैट डेटा का अन्म र्ेधशालाओं से प्राप्त डेटा के संग सयुंि अध्ययन सकया जायेगा। िुणे के सनकट जायंट मीटरर्ेर् रेसडयो टेलीस्कोि (Giant Metrewave Radio Telescope), देर्स्थल, माउंट आबू एर्ं हानले में क्तस्थत दृश्य एर्ं अधोरि र्ेधशालायें, तथा दुसनया की कुछ अन्य र्ेधशालायें भी अस्ट्रोसैट से समल कर कायव करेंगी।

२४. िारत र्ैसे एक भवकासशील देश कय अंतररक्ष वेधशालाओं में क्यं भनवेश करना चाभहए?

इस प्रशन के कई उत्तर हैं। प्रथम, मनुष्य,चाहे र्े सकसी भी सभ्यता या देश हों, सदा से ही ब्रह्माण्ड और अिने आस िास सक दुसनया के बारे में सजज्ञासु रहा है और इस सजज्ञासा को शांत करने के सलए प्रयत्नशील भी। खगोलशाि संभर्तः सबसे प्राचीन सर्ज्ञान है, क्ोंसक मानर् के सबसे िहले सर्ाल िृथर्ी, सूयव, चन्द्र एर्ं अंतररक्ष में सटमसटमाते तारों के बारे में ही थे। खगोलशाि मनुष्य की कल्पना को उड़ान देता है और हमें अिने अक्तस्तत्व के मूल से जुडी चीिों के बारे में सोचने को मजबूर कर इस सर्श्व के प्रसत हमारे दृसष्ट्कोण को व्यािक बनता है। दुसनया के हर देश को इसे बढ़ार्ा देना चासहए।
दूसरा, सर्काशील देशों के सलए, अन्म क्षमताओं के साथ-साथ, अिनी तकनीकी और र्ैज्ञासनक क्षमता बढ़ाना भी असनर्ायव है। भारत में उ ऊजाव भौसतकी एर्ं उिग्रह प्रक्षेिण, दोनों की ही मजबूत िरंिरा रही है। अस्ट्रोसैट जैसी िरीयोजनाएं इसी मिबूत नींर् िर आधाररत अगला कदम है, जो हमें एक सर्श्व स्तरीय अंतररक्ष र्ेधशाला तक ले जा सकता है। सर्ज्ञान और तकनीक का इसतहास गर्ाह है, सक मौसलक सर्ज्ञान के शोध से असंबंसधत क्षेत्रों में अप्रत्यासशत सामासजक और आसथवक रूि से लाभप्रद सर्चारों, तकनीकों और उिकरणों का ज होता है। मोबाइल फोन में प्रयोग होने र्ाली बेतार तकनीकें, कैमरों में उियोग सकये जाने र्ाली सी.सी.डी. (CCD), जी. िी. एस. (GPS) एर्ं सचसकत्सीय र् संचार क्षेत्र में प्रयोग होने र्ाली बहुत सी महत्विूणव तकनीकें खगोलशात्र के शोध से ही उत्पन्न हुई हैं। मौसलक सर्ज्ञान में सनर्ेश करने र्ाला हर देश सनस्संदेह ही आने र्ाले कुछ ही र्षों में अत्यंत उियोगी तकनीकों से िुरस्कृत होता है।
भारत जैसे देश में, जहााँ उ सशक्षा की आकांक्षाएाँ तो बहुत हैं, िरन्तु अच्ची गुणर्त्ता र्ाली सर्ज्ञान सशक्षा की कमी है, अस्ट्रोसैट जैसी िररयोजनायें हमारे छात्रों और अध्यािकों दोनों की ही कल्पनाओं को प्रज्वसलत करने की क्षमता रखती हैं। इस उत्साह और क्षमता का सदुियोग करना अब हमारे हाथ में है।

२५. क्ा अस्ट्रयसैट से भवद्यालययं में भवज्ञान प्रभशक्षण कय िी कयई लाि हयगा?

हमारी आशा है सक ऐसा अर्श्य होगा! सकसी भी सर्श्व स्तरीय र्ैज्ञासनक िररयोजना, सजसका उद्देश्य हमारे ब्रह्माण्ड के कुछ मूलभूत प्रश्ों का उत्तर खोजना हो, सर्द्यासथवओं सक सर्ज्ञान में रुसच सर्कससत करने की अिार क्षमता रखता है। मानर् का चन्द्र िर िहुंचना, र्ॉयजर (Vogayer) का सौयव मंडल से बाहर जाना, लाजव हैडरॉन कोलाइडर (Large Hardon Collider), जी. एम. आर. टी. (GMRT), चंियान, मासव ऑसबवटर समशन (Mars Orbitor Mission) इत्यासद िररयोजनाएं इस प्रकार के कई अन्म उदाहरणों में से है। ऐसी िररयोजनओं का सर्द्यालयों की कक्षाओं में रोचक रूि से उियोग करना हमारे हाथ में है।
अस्ट्रोसैट द्वारा अर्लोसकत सभी सदलचस्प सिंड, जैसे न्मूटरॉन तारे (Neutron stars), ब्लैक होल्स (black holes) और िररर्तवनशील सिंडों इत्यासद का सभी डेटा और उसका सर्श्लेषण करने के सलए आर्श्यक सॉफ्टर्ेयर सनःशुि इंटरनेट िर हर सकसी के सलए उिलब्ध रहेगा। । हमें आशा सक अस्ट्रोसैट डेटा में बहुत से लोगों सक बेहद रूसच होगी। इस डेटा का प्रयोग सर्द्यासथवयों और अध्यािकों के सलए सुलभ बनाने के सलए सरल प्रसक्रयाओं का सनमावण करना होगा। इस डेटा का प्रयोग सकस प्रकार नागररक सर्ज्ञान (Citizen Science) िररयोजनाओं के सलए सकया जा सकता है, और कुछ ऐसी अन्म संभार्नाओं िर ससक्रय रूि से सर्चार सकया जा रहा है। क्ोंसक अस्ट्रोसैट एक भारतीय उिग्रह है, इसकी संिूणव सुसर्धाएं हमें सुलभ रूि से उिलब्ध हैं और हमें इस अर्सर का उसचत लाभ उठाना चासहए।

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